Saturday, January 12, 2008

जलवा एक्सप्रेस....

साली ने चार साल से पागल बना रखा है
ये झुंझलाहट के शब्द है उस आशिक के जो चार साल से जलवा एक्सप्रेस को देख रहा है
अब तो लोगों ने इस आशिक का नाम दिवाना भजिया वाला रख दिया है
सच में जब वो निकलती है तो टैक्सी वाले, चाय वाले और चैनल वाले भी काम छोड़कर लाइन लगा कर सड़क पर आ जाते है।
इस एक्सप्रेस का आने का समय है सुबह दस बजे
और जाने का समय है शाम को छह बजे।
इस एक्सप्रेस पर बैठने की तो बात सोचना गलत होगा
लेकिन अगर आप जलवा एक्सप्रेस को देखना चाहते हैं तो आप इस पते और तय समय पर आ सकते हैं।
पता है-
हैंगआउट, कैफे
फेमस स्टूडियों के बगल में
महालक्ष्मी, मुंबई

Friday, January 11, 2008

होठों को छूकर....


कुछ जली जिंदगी कुछ अधजली जिंदगी
दिख रही है इन टुकड़ो में
टुकड़ो टुकड़ो में बटी जिंदगी भी दिख रही है इन टुकड़ो में
धुएं की तरह जिंदगी के उड़ते गुबार भी दिख रहे हैं इन टुकड़ो में
जाने कितने लोगों ने मिल कर इन टुकड़ो को सजाया होगा
ऐश के लिए इस ऐश ट्रे में।
कितने होठों की मिठास भी जमी है इन टुकड़ो में
सच में इन टुकड़ो में वो टुकड़े भी शामिल हैं जो कई लड़कियों के होठों को छू कर पड़े हैं
जिसकी गवाह हैं मेरी आंखे और मेरे शब्द।

दीमक लगी जड़ें

दीमक लगी जड़ें, निराश पड़ी हैं पांव फैलाये, मौत के इंतजार में.......किसी की आस लगाये।

Wednesday, January 9, 2008

दिया और सूरज


गांव के घूर पर जलता एक दिया, सूरज की रोशनी के साथ साथ सूरज को चिढ़ाता हुआ जैसे चिढ़ाता है
कोई नन्हा सा बच्चा, किसी अपने से बड़े बुजुर्ग को।
सोधी सी शाम होने के पहले कोई जला गया था टोटके के लिए।

Friday, January 4, 2008

नन्ही आम्रपाली

उसे मैंने देखा है....सड़क की फुटपाथ वाली रोड पर
रात के बारह बजे के बाद मंधिम रोशनी में खड़ी
पहली नजर में लगा कोई मासूम बच्ची भटक गई है घर का रास्ता
मदद के लिए ही तो मैंने रोकी थी अपनी गाड़ी
लेकिन मैं सन्न रह गया था जब वो मेरे पास आई और जुबान खोली
500 रूपये, एक घंटे का........सकते में आ गया था मैं
कुछ पल पहले मासूम सी दिखने वाली वो नन्ही आम्रपाली अब जवान लग रही थी
उसके नखरे भी जवान लग रहे थे
मेरी कुछ समझ में नही आ रहा था
बस मैंने अचानक गाड़ी आगे बढ़ा दी
और एक नन्ही सी आवाज सुनाई पड़ी
भड़ुओं को करना धरना कुछ नही चले आते हैं.....।