Saturday, May 12, 2007

गवाही दे.....

सच लिखेगा, सच कहेगा
दे गवाही तू...

राम की सीता लिखेगा
कृष्ण की राधा लिखेगा
कोठे की गाथा लिखेगा
दे गवाही तू...

हार भी अपनी लिखेगा
जीत भी अपनी लिखेगा
जब गिरा है, जब उठा है
सब लिखेगा
दे गवाही तू....

बचपनें का प्यार लिख तू
प्यार का इजहार लिख तू
प्यार में टकरार लिख तू
प्यार में धोखा दिया है
प्यार ने धोखा दिया है
क्यों दिया है
दे गवाही तू...

हद....

सुलगता देश
सुलगते शहर
सुलगते गांव
सुलगते घर
सुलगता परिवार
सुलगते लोग
सुलगते अरमान
सुलगती सांसे
सुलगते एहसास
सुलगते दिन
सुलगती रातें
सुलगते सपनें.....
फिर भी हम जिंदा रहना चाहते हैं...
जिंदा रहने की हद तक.........

दलाल......

जिसको देखो वही दलाल हो गया
अब ये तो हमारे देश का हाल हो गया
इसी लिए हमारा देश बकरे की तरह हलाल हो गया

मंदिर में मधुशाला है
मस्जिद में वेश्याला है
गुरूद्वारे में जाम है, प्याला है
हर जगह दलाली है
सिर्फ दलालों का बोलबाला है
धर्म कर्म सब काला है
कैसा ये मानव साला है
जो करता है ब्रम्हचर्य धर्म का पालन
उसके बिस्तर पर बाला है
इन सब कुरितियों को
सिर्फ दलालों ने पाला है
इसी लिए हवाला है
इसी लिए घोटाला है
अब ये तो हमारे देश का हाल हो गया
इसी लिए हमारा देश बकरे की तरह हलाल हो गया।

रोज एक नयी सांस बिस्तर पर घुटती है
रोज कोई मां, कोई बहन सरेआम लुटती है
रोज किसी नाबालिग को बालिग बनाया जाता है
उसकी चीखो के साथ जश्न मनाया जाता है
रोज कोई नारी बेपर्द हो जाती है
उसकी नंगी देह सर्द हो जाती है
क्योंकि पूर्ण मानव काम का काल हो गया
अब ये तो हमारे देश का हाल हो गया
इसी लिए हमारा देश बकरे की तरह हलाल हो गया।

दलालों ने दलाली ली आतंक फैलाया
आग लगाया, घर जलाया
कितनों को अपंग किया
कितनों को मौत की नींद सुलाया
बदले में पैसा पाया
इसी मौत की दलाली से दलाल मालामाल हो गया
और हमारा देश बकरे की तरह हलाल हो गया।
पुरक़ैफ़

Thursday, May 10, 2007

घुटन....

देर रात थके हारे पांव
जब फैलते हैं बिस्तर पर तो
घुटन होती है....

भोर होने तक
जब जागती रहती हैं आंखे
इस सोच में कि...
कल क्या होगा तो
घुटन होती है....

अकेले दिन बिताने के बाद
रात के इंतजार में
बिस्तर को ताकती
एक सुकुमार देह
सो जाती है
एक छुअन बगैर तो
घुटन होती है...

अनगढ़े से शब्द
जब सुनायी पड़ते हैं
और आंखो के सामने
बनता है एक बिम्ब
जैसे एक अतुकान्त कविता तो
घुटन होती है...

आइसक्रीम की एक डंडी
जब जमीन से उठाकर
चाटता है एक बच्चा
जिसे एक बच्चे ने फेंका था
अपने डैडी के कहने पर तो
घुटन होती है...

पुरक़ैफ़

Tuesday, May 8, 2007

एक बाप की मौत......

झोपड़ी में झोपड़ी बस जोड़ता वो मर गया,
झोपड़ी में खोपड़ी बस फोड़ता वो मर गया।

सत्य का था वो पुजारी और अहिंसा धर्म था,
प्यास कुछ ऐसी लगी जल खोजता वो मर गया।

घर में चूल्हे जल रहे थे पर अलग थे लोग सब,
क्यों अलग हैं लोग सब ये सोचता वो मर गया।

एक बगिया भी लगाई थे बड़े उत्साह से,
एक महकते फूल को बस खोजता वो मर गया।

घर में उसने खिड़कियां भी बनाई थी मगर,
कुछ घुटन ऐसी हुई सर नोचता वो मर गया।

जब मरा तो लोग कहते थे बड़ा वो नेक था,
कुछ थे अपने कह रहे थे बोझ था वो मर गया।

पुरक़ैफ़